प्रेम माने क्या?
प्रेम की हमारी परिभाषा है जो व्यक्ति हमारे सुख और खुशी का ध्यान रखे, जो अपनी खुशी से ज्यादा हमारी खुशी को महत्व दे। बहुत उथली और गलत परिभाषा है। इतनी गलत कि थोड़ा गहराई से अवलोकन करे अपने जीवन का तो पायेंगे कि हमारे सबसे बड़े बंधन उन्ही संबंधों से उपजते हैं जिन्हें हमने प्रेम की संज्ञा दी होती है।
एक शराबी की नजर में उसका सबसे बड़ा प्रेमी वो है जो उसे शराब् का प्याला दे क्यूंकि नशे में ही उसकी खुशी है। वो जो उसे नशा उतारने की दवाई दे, जो शराब् की जगह उसे उसे निंबू पानी दे, उसका सबसे बड़ा दुश्मन है। हमारी हालत भी शायद कुछ उस शराबी के जैसी ही है।
प्रेम के मूल में सुख और ख़ुशी बिल्कुल नहीं हैं। प्रेम के मूल में है मुक्ति और शांति। मुक्ति हमारे उन बंधनों से जो रोकते हैं हमें हमारी उच्चत्तम संभावनाओ को साकार करने से। हमारा बड़ा मोह है अपने बंधनों से, तभी तो उस ईसा को जो हमारे बंधन काटने आता है, हम सूली पर चढ़ाते हैं। प्रेम करना हर किसी के बस की बात भी नहीं। इसलिए अगर पाओ कोई ऐसा अपने आस पास जो तुम्हे मुक्ति की तरफ ले जाता है, तो इसे परमात्मा का प्रेम ही जानना।